बद्रीविशाल परमानंद छत्तीसगढ़ के जाने माने लोक कवि हैं जिनके बारे में हरि ठाकुरजी लिखते हैं - "परमानन्द जी छत्तीसगढ़ के माटी के कवि हैं। छत्तीसगढ़ के माटी ले ओखर भाषा बनथे, ओखर शब्द अउ बिम्ब लोकरंग अउ लोकरस से सनाये हे। ओखर रचना हा गांव लकठा में बोहावत शांत नदिया के समान हे जउन अपने में मस्त हे।" उनका जन्म गांव छतौना में 1917 में हुआ था। रायपुर में उनकी बनाई हुई भजन मंडली 'परमानंद भजन मंडली' के नाम से जाने जाते हैं और करीब 70 भजन मण्डली अभी भी चल रहे हैं। 1942 में आजादी की गीत गागाकर भजन मण्डली, लोगों में नई जोश पैदा करता था। उनके कई सारे गीत अत्याधिक लोकप्रिय हैं। उनकी मृत्यु 1993 में हुआ था, जिन्दगी के आखरी सांस तक वे न जाने कितने कष्ट उठाये और अन्त में हस्पताल में अकेले पड़े रहे और आखरी सांस लिये।
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