साहित्यकार एवं इतिहासविद् श्री प्यारेलाल गुप्तजी का जन्म सन् 1948 में रतरपुर में हुआ था। गुप्तजी आधुनिक साहित्यकारों के "भीष्म पितामाह" कहे जाते हैं। उनके जैसे इतिहासविद् बहुत कम हुए हैं। उनकी "प्राचीन छत्तीसगढ़" इसकी साक्षी है। साहित्यिक कृतियाँ - 1. प्राचीन छत्तीसगढ़ 2. बिलासपुर वैभव 3. एक दिन 4. रतीराम का भाग्य सुधार 5. पुष्पहार 6. लवंगलता 7. फ्रान्स राज्यक्रान्ति के इतिहास 8. ग्रीस का इतिहास 9. पं. लोचन प्रसाद पाण्डे । गुप्त जी अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी तीनों भाषाओं में बड़े माहिर थे। गांव से उनका बेहद प्रेम था।
"प्राचीन छत्तीसगढ़" लिखते समय गुप्तजी निरन्तर सात वर्ष तक परिश्रम की थी। इस ग्रन्थ में छत्तीसगढ़ के इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य को प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक की भूमिका में श्री प्यारेलाल गुप्त लिखते हैं - "वर्षो की पराधीनता ने हमारे समाज की जीवनशक्ति को नष्ट कर दिया है। फिर भी जो कुछ संभल पाया है, वह हमारे सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक उपादानों के कारण। नये इतिहासकारों को इन जीवन शक्तियों को ढूँढ़ निकालना है। वास्तव में उनके लिए यह एक गंभीर चुनौती है"
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