जो छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखते चले आ रहे हैं। उनकी 'छत्तीसगढ़ी गीतमाला' 'फूल भरे अंचरा' तथा हिन्दी में 'सतीसावित्री', 'करुणाजंलि', 'सुधियो के स्वर', 'मन का वृन्दावन जलता है' काव्य कृति के कारण गुरु घासीदास विश्वविद्यालय उन पर शोध कार्य किया है। उनकी रचनायें आकाशवाणी भोपाल, रायपुर, बिलासपुर से नियमित प्रसारित होते हैं। छत्तीसगढ़ी संस्कृति से उन्हें लेखन की प्रेरमा मिली है। वे मुख्यरुप से गीत, कहानी, निबंध, प्रबंध काव्य, व्यंग्य लिखते चले आ रहे हैं।
प्रभजंन शास्त्री - भी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनो में समान रुप से लिख रहे हैं उन्हें लेखन कार्य में नारायण लाल परमार से बहुत प्रेरणा मिली है। छत्तीसगढ़ी में 'बिन मांड़ी के अंगना', भगवत गीता के अनुवाद तथा " कौसल्यानंदन" उनके प्रमुख लेख हैं।
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